गोविन्द शंकर कुरुप अनुक्रम जीवन परिचय प्रकाशित कृतियाँ सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ दिक्चालन सूची"ओटक्कुषल्""पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार किसे दिया गया था""अकादमी पुरस्कार""उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में"संस्कृत साहित्य में गहन रुचि थी शंकर कुरूप कीAn overview of the major genres of modern Malayalam literatureG. Sankara Kurup's Jnanpith Award Acceptance SpeechThe Poet's commentary on his workसंसं
गोविन्द शंकर कुरुपताराशंकर बंधोपाध्यायकुप्पाली वी गौड़ा पुटप्पाउमाशंकर जोशीसुमित्रानंदन पंतफ़िराक़ गोरखपुरीविश्वनाथ सत्यनारायणविष्णु डेरामधारी सिंह 'दिनकर'दत्तात्रेय रामचंद्र बेन्द्रेगोपीनाथ मोहंतीविष्णु सखाराम खांडेकरपी॰ वी॰ अकिलानंदमआशापूर्णा देवीकोटा शिवराम कारन्तसच्चिदानंद वात्स्यायनवीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्यएस. के. पोट्टेक्काटराजेन्द्र शाहदण्डपाणि जयकान्तनगोविन्द विनायक करंदीकररहमान राहीकुँवर नारायणरवीन्द्र केलकरसत्यव्रत शास्त्रीओ॰ ऍन॰ वी॰ कुरुपअख़लाक़ मुहम्मद ख़ान 'शहरयार'अमर कान्तश्रीलाल शुक्लचन्द्रशेखर कम्बारप्रतिभा रायरावुरी भारद्वाजकेदारनाथ सिंहभालचंद्र नेमाडेरघुवीर चौधरीशंख घोषकृष्णा सोबतीअमिताभ घोष
१९६८ पद्म भूषणमलयालम साहित्यकारज्ञानपीठ सम्मानित1901 में जन्मे लोग१९७८ में निधनसाहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मलयालम भाषा के साहित्यकारभारतीय लेखकभारतीय साहित्यकार
५ जून१९०१-२ फरवरी१९७८मलयालमकेरलनायतोट्टरघुवंशश्लोककुंजिकुट्टनतिरुविल्वमलाअँग्रेजीभाषासाहित्यओटक्कुष़लकविता–संग्रहसाहित्य अकादमीपेरुमपावूरकोचीनबांग्लामलयालमचालाकुटिएर्णाकुलमआकाशवाणीसोवियतलैंड नेहरू पुरस्कारसाहित्य एवं शिक्षा१९६८भारत सरकारपद्म भूषण
गोविन्द शंकर कुरुप |
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गोविन्द शंकर कुरुप या जी शंकर कुरुप (५ जून १९०१-२ फरवरी १९७८)[1]मलयालम भाषा के प्रसिद्ध कवि हैं। उनका जन्म केरल के एक गाँव नायतोट्ट में हुआ था। ३ साल की उम्र से उनकी शिक्षा आरंभ हुई। ८ वर्ष तक की आयु में वे 'अमर कोश' 'सिद्धरुपम' 'श्रीरामोदन्तम' आदि ग्रन्थ कंठस्थ कर चुके थे और रघुवंश महाकाव्य के कई श्लोक पढ चुके थे। ११ वर्ष की आयु में महाकवि कुंजिकुट्टन के गाँव आगमन पर वे कविता की ओर उन्मुख हुये। तिरुविल्वमला में अध्यापन कार्य करते हुये अँग्रेजी भाषा तथा साहित्य का अध्यन किया। अँग्रेजी साहित्य इनको गीति के आलोक की ओर ले गया। उनकी प्रसिद्ध रचना ओटक्कुष़ल[2]
अर्थात बाँसुरी भारत सरकार द्वारा दिए जाने वाले साहित्य के सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ द्वारा सम्मानित हुई।[3]
इनके द्वारा रचित एक कविता–संग्रह विश्वदर्शनम् के लिये उन्हें सन् 1963 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।[4]
अनुक्रम
1 जीवन परिचय
2 प्रकाशित कृतियाँ
3 सन्दर्भ
4 बाहरी कड़ियाँ
जीवन परिचय
नायतोट्ट के सरलजीवी वातावरण में गोविन्द शंकर कुरुप का जन्म शंकर वारियर के घर में हुआ। उनकी माता का नाम लक्ष्मीकुट्टी अम्मा था। बचपन में ही पिता का देहांत हो जाने के कारण उनका लालन-पालन मामा ने किया। उनके मामा ज्योतिषी और पंडित थे जिसके कारण संस्कृत पढ़ने में उनकी सहज रुचि रही और उन्हें संस्कृत काव्य परंपरा के सुदृढ़ संस्कार मिले। आगे की पढ़ाई के लिए वे पेरुमपावूर के मिडिल स्कूल में पढ़ने गए। सातवीं कक्षा के बाद वे मूवाट्टुपुपा मलयालम हाई स्कूल में पढ़ने आए। यहाँ के दो अध्यापकों श्री आर.सी. शर्मा और श्री एस.एन. नायर का उनके ऊपर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने कोचीन राज्य की पंडित परीक्षा पास की, बांग्ला और मलयालम के साहित्य का अध्ययन किया। उनकी पहली कविता 'आत्मपोषिणी' नामक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई और जल्दी ही उनका पहला कविता संग्रह 'साहित्य कौतुमकम' प्रकाशित हुआ। इस समय वे तिरुविल्वामला हाई स्कूल में अध्यापक हो गए। १९२१ से १९२५ तक श्री शंकर कुरुप तिरुविल्वामला रहे। १९२५ में वे चालाकुटि हाई स्कूल आ गए। इसी वर्ष साहित्य कौतुकम का दूसरा भाग प्रकाशित हुआ। उनकी प्रतिभा और प्रसिद्धि चारों ओर फैलने लगी थी। १९३१ में नाले (आगामी कल) शीर्षक कविता से वे जन-जन में पहचाने गए। १९३७ से १९५६ तक वे महाराजा कॉलेज एर्णाकुलम में प्राध्यापक के पद पर कार्य करते रहे। प्राध्यापकी से अवकाश लेने के बाद वे आकाशवाणी के सलाहकार बने। १९६५ में ज्ञानपीठ के बाद उन्हें १९६७ में सोवियतलैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुआ। गोविंद शंकर कुरुप को साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन १९६८ में भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था, तथा उसी वर्ष राष्ट्रपति ने उन्हें राज्य सभा का सदस्य भी मनोनीत किया जिस पर वे १९६८ से १९७२ तक बने रहे। १९७८ में उनकी मृत्यु के समय केरल में राजकीय अवकाश की घोषणा की गई।
प्रकाशित कृतियाँ
कविता संग्रह - साहित्य कौतुकम् - चार खंड (१९२३-१९२९), सूर्यकांति (१९३२), नवातिथि (१९३५), पूजा पुष्पमा (१९४४), निमिषम् (१९४५), चेंकतिरुकल् मुत्तुकल् (१९४५), वनगायकन् (१९४७), इतलुकल् (१९४८), ओटक्कुष़ल्(१९५०), पथिकंटे पाट्टु (१९५१), अंतर्दाह (१९५५), वेल्लिल्प्परवकल् (१९५५), विश्वदर्शनम् (१९६०), जीवन संगीतम् (१९६४), मून्नरुवियुम् ओरु पुष़युम् (१९६४), पाथेयम् (१९६१), जीयुहे तेरंजेटुत्त कवितकल् (१९७२), मधुरम् सौम्यम् दीप्तम्, वेलिच्चत्तिंटे दूतम्, सान्ध्यरागम्।
निबंध संग्रह - गद्योपहारम् (१९४०), लेखमाल (१९४३), राक्कुयिलुकल्, मुत्तुम् चिप्पियुम (१९५९), जी. युटे नोटबुक, जी युटे गद्य लेखनंगल्।
नाटक - इरुट्टिनु मुन्पु (१९३५), सान्ध्य (१९४४), आगस्ट १५ (१९५६)।
बाल साहित्य - इलम् चंचुकल् (१९५४), ओलप्पीप्पि (१९४४), राधाराणि, जीयुटे बालकवितकाल्।
आत्मकथा - ओम्मर्युटे ओलंगलिल् (दो खंड)
अनुवाद - अनुवादों में से तीन बांग्ला में से हैं, दो संस्कृत से, एक अंग्रेज़ी के माध्यम से फ़ारसी कृति का और एक इसी माध्यम से दो फ़्रेंच कृतियों के। बांग्ला कृतियाँ हैं- गीतांजलि, एकोत्तरशती, टागोर। संस्कृत की कृतियाँ हैं- मध्यम व्यायोग और मेघदूत, फारसी की रुबाइयात ए उमर ख़ैयाम[5] और फ़्रेंच कृतियों के अंग्रेजी नाम हैं- द ओल्ड मैन हू डज़ नॉट वांट टु डाय, तथा द चाइल्ड व्हिच डज़ नॉट वॉन्ट टु बी बॉर्न।
सन्दर्भ
↑ ज्ञानपीठ पुरस्कार. नई दिल्ली: भारतीय ज्ञानपीठ. 2005. पृ॰ 18. 81-263-1140-1. पाठ "lastश्रोत्रिय " की उपेक्षा की गयी (मदद);|first1=
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↑ "ओटक्कुषल्" (पीएचपी). भारतीय साहित्य संग्रह. अभिगमन तिथि ६ दिसंबर 2008.|access-date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
↑ "पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार किसे दिया गया था" (पीएचपी). बीबीसी. अभिगमन तिथि दिसंबर 2008.|access-date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
↑ "अकादमी पुरस्कार". साहित्य अकादमी. अभिगमन तिथि 11 सितंबर 2016.
↑ "उमर की रुबाइयों के अनुवाद भारतीय भाषाओं में". काकेश की कतरनें. अभिगमन तिथि ६ दिसंबर 2008.|access-date=
में तिथि प्राचल का मान जाँचें (मदद)
बाहरी कड़ियाँ
संस्कृत साहित्य में गहन रुचि थी शंकर कुरूप की (प्रभासाक्षी)- An overview of the major genres of modern Malayalam literature
- G. Sankara Kurup's Jnanpith Award Acceptance Speech
- The Poet's commentary on his work
-1901 में जन्मे लोग, १९६८ पद्म भूषण, १९७८ में निधन, ज्ञानपीठ सम्मानित, भारतीय लेखक, भारतीय साहित्यकार, मलयालम साहित्यकार, साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत हिन्दी भाषा के साहित्यकार