नैनो विज्ञान अनुक्रम नैनो का इतिहास नैनो के कुछ अनुप्रयोग नैनो आकार नैनो स्तर पर पदार्थों का गुण धर्म = नैनो के तकनीकी पक्ष अर्धचालक विकास के कुछ मूलभूत नियम नैनो के कुछ प्राकृतिक उदाहरण नैनो के क्षेत्र में भारतीय पहल सन्दर्भ बाहरी कड़ियाँ दिक्चालन सूचीनैनो विज्ञान पर उपलब्ध शैक्षणिक सामग्रीनैनो विज्ञान और तकनीकि पर भारतीय पहल

विज्ञानपदार्थ विज्ञान








सिलिका नैनो कण





प्रसिद्ध समुराई तलवार


नैनो विज्ञान ने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी एक गहरी पैठ बनाई है। सूक्ष्मता के मापन और अनुप्रयोग पर आधारित भौतिक विज्ञान की यह विधा कोई बहुत नई नहीं है। अनुप्रयोग के रूप में यह बहुत प्राचीन है। लेकिन हाल के वर्षों में हुए शोधों ने इसके अध्ययन को एक नई दिशा प्रदान की है।




अनुक्रम





  • 1 नैनो का इतिहास


  • 2 नैनो के कुछ अनुप्रयोग


  • 3 नैनो आकार


  • 4 नैनो स्तर पर पदार्थों का गुण धर्म =


  • 5 नैनो के तकनीकी पक्ष


  • 6 अर्धचालक विकास के कुछ मूलभूत नियम

    • 6.1 नैनो स्तर पर पदार्थ निर्माण



  • 7 नैनो के कुछ प्राकृतिक उदाहरण


  • 8 नैनो के क्षेत्र में भारतीय पहल


  • 9 सन्दर्भ


  • 10 बाहरी कड़ियाँ




नैनो का इतिहास


नैनो कितना बड़ा होता है या कितना छोटा। इसे जानने के लिए हम इसकी शुरुआत नैनो के इतिहास से करते हैं। आरंभ से ही सूक्ष्म का अध्ययन मानवीय उत्सुकता के केन्द्र में रहा है। हमारे पुराने ग्रंथों में पदार्थ विज्ञान और सूक्ष्मता का वर्णन मिलता है। लगभग 3000 वर्ष पूर्व रचित श्वेताश्वतरोपनिषद् में ब्रह्माण्ड के सबसे छोटे कण के माप का वर्णन मिलता है।
केशाग्रशतभागस्य शतांशः सादृशात्मकः।
जीवः सूक्ष्मस्वरूपोsयं संख्यातीतो हि चित्कणः।।

यदि केश के अग्रभाग को सौ भागों में विभाजित किया जाए और प्रत्येक भाग को और सौ भागों में विभाजित किया जाए, तब शेष बचा हुआ भाग ब्रह्माण्ड का सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग होगा।


यह उल्लेखनीय है कि उपरोक्त वर्णित ब्रह्माण्ड के सूक्ष्मातिसूक्ष्म भाग का मापन नैनो के समतुल्य होता है।



नैनो के कुछ अनुप्रयोग


नैनो विज्ञान के सिद्धांत के प्रथम अनुप्रयोग का श्रेय रोम को जाता है। रोम में चौथी शताब्दी में बने शीशे के रंग बिरंगे प्याले अब भी बहुत आकर्षित दिखते हैं। रगंहीन शीशे को विविध रंगो से सुसज्जित करने के लिए सोने और चांदी के नैनो कणों का प्रयोग किया जाता था।

नैनो विज्ञान के एक अन्य प्राचीन अनुप्रयोग के रूप में काजल का नाम लिया जा सकता है। सौंदर्य और स्वास्थ्य कारणों से बहुत पहले से काजल का प्रयोग किया जाता रहा है। सामान्यतः काजल बनाने के लिए एक पारंपरिक विधि का प्रयोग करते हैं। इसमें सरसो के तेल या घी के दीपक के ऊपर किसी धातु के पात्र (कजरौटा) को रख कर बनाते हैं। तेल के अपूर्ण दहन से से उत्पन्न होने वाली कार्बन में नैनो ट्यूब्स की प्रचुर मात्रा होती है। इस प्रकार कुल उत्पन्न कार्बन का लगभग एक प्रतिशत भाग कार्बन नैनो कणों द्वारा मिल कर बना होता है।

एक अन्य उदाहरण जापान की प्रसिद्ध मध्यकालीन समुराई तलवारों का दिया जा सकता है। जापान की अति प्राचीन युद्ध विद्या में समुराई तलवारों का एक विशिष्ट स्थान है। यह तलवारें अपनी तेज धार और मजबूती के लिए जानी जाती हैं। इन तलवारों को बनाने में Forge and Fold तकनीकी का प्रयोग करते थे। इस तकनीकी में पहले धातु को गर्म करके पीटते हैं और फिर पतला करके मोड़ते हैं। ऐसा बार बार (लगभग50-100 बार) दोहराने से बने धातु की सतह बहुत पतली (लगभग 50 नैनो मीटर) और मजबूत हो जाती है। एक दूसरा उदाहरण बनारसी साड़ियों में प्रयोग होने वाले सोने के पतले रेशों का दिया जा सकता है। यह रेशे 10 माइक्रॉन (नैनो मीटर स्तर) तक मोटाई के हो सकते हैं। सोने के इन रेशों की वजह से बनारसी साड़ी की आभा में कई गुना वृद्धि हो जाती है।

नैनो के इन प्राचीन अनुप्रयोगों को देखने से यह ज्ञात होता है कि तकनीकी विकास के लिए गहन वैज्ञानिक ज्ञान का होना आवश्यक नहीं है। इसे आवश्यकताओं, अनुभवों और अनुकूलन से भी सीखा जा सकता है। यह कहा जा सकता है कि हमने नैनो को वैज्ञानिक रूप से अभी जानना आरंभ किया है लेकिन यह भी सत्य है कि हम कहीं बहुत पहले से इसका प्रयोग करते आ रहे हैं। हाल के वर्षों में हुए शोधों और वैज्ञानिक विकास से हमें इसके वैज्ञानिक कारणों का पता मात्र चला है। अब यहां प्रश्न यह उठता है कि नैनो विज्ञान आज इतना चर्चित क्यों है?
यहां तक की हॉलीवुड के निर्माता भी नैनो की चर्चा कर रहे हैं और दूसरी ओर उद्योगपति भी नैनो कार की बोत कर रहे हैं। इससे सिद्ध होता है कि नैनो विज्ञान और इसके अनुप्रयोगों को लेकर हम काफी उत्साहित हैं।



नैनो आकार


यहां यह उल्लेखनीय है कि हम नग्न आंखो से 40-50 माइक्रॉन तक ही देख सकते हैं और यह सामान्य अनुभव की बात है कि हम जिसे देख सकते हैं उसी का अध्ययन भी कर सकते हैं। जिसका अध्ययन कर सकते हैं उसे ही नियंत्रित करके तकनीकी उपयोग में भी ला सकते हैं। नैनो के वैज्ञानिक अध्ययन को स्केनिंग प्रोब सूक्ष्मदर्शी की खोज से एक नई दिशा मिली। बिनिगन रोरर द्वारा 1981 में खोजे गए स्केनिंग इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के लिए उन्हें 1985 का नोबल पुरस्कार भी मिला। वास्तव में इस सूक्ष्मदर्शी का अविष्कार एक ऐतिहासिक घटना थी। इस शोध ने हमें एक नई दृष्टि प्रदान की जिससे अति सूक्ष्म स्तर पर पदार्थों का अध्ययन संभव हो पाया। यह देखा गया है कि विभिन्न कारणों से सूक्ष्मता के इस स्तर पर अध्ययन बहुत आवश्यक है।



नैनो स्तर पर पदार्थों का गुण धर्म =


नैनो के तकनीकी उपयोग की संभावनाओं के अनेक कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि नैनो आकार में पदार्थ के मूल गुण बहुत बदल जाते हैं। रंग, क्रियाशीलता, वैद्युतीय गुणों आदि में एक उल्लेखनीय परिवर्तन भी देखने को मिलता है। यह परिवर्तन चूंकि मूल गुणों से अलग होते हैं अतः नियंत्रित स्थिति में इन परिवर्तनों का उपयोग करके असामान्य से लगने वाले अनुप्रयोगात्मक विकास भी किये जा सकते हैं। सोने के कोलॉइडी विलयन का उदाहरण दिया जा सकता है। सोने के सामान्य कणों का रंग पीला होता है लेकिन नैनो आकार पर इसके लाल और सफेद कोलॉइडी विलयन भी बनाए जा सकते हैं। 1857 में माइकल फैराडे ने सोने का एक कोलॉइडी विलयन तैयार किया था। सोने के नैनो आकार के कणों का यह विलयन कई मामलों में अलग है। सबसे बड़ी विशेषता कि यह विलयन इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी जस का तस है। यद्यपि नैनो स्तर पर पदार्थ की क्रियाशीलता बहुत बढ़ जाती है फिर भी इस विलयन में आज तक कोई परिवर्तन नहीं देखने को मिला है। इस प्रकार फैराडे ने यह सिद्ध कर दिया कि नैनो का स्थाई विलयन भी बनाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त अगर हम जीवन की उत्पत्ति के संदर्भ देखें तो यह ज्ञात होगा कि प्रारंभिक जीवन अणुओं के आकार का था। अतः अणुओं का अध्ययन जीवन को समझने के लिए बहुत आवश्यक हो जाता है।



नैनो के तकनीकी पक्ष


दूसरा एक आधुनिक तकनीकी पक्ष भी है। आज के युग को हम सिलिकन का युग मानते हैं। सिलिकन कि ही जरिए हमें यह सूचना क्रांति देखने को मिली है। सिलिकन एक अद्धचालक है और सभी इलेक्ट्रॉनिक परिपथों में इसके प्रयोग होता है। 1960 से इनका लघुकरण होता जा रहा है। वर्तमान में स्थिति यह है कि एक इलेक्ट्रॉनिक चिप पर करीब दस लाख सिलिकन यंत्र हैं और प्रत्येक यंत्र का आकार 500 नैनो मीटर का है। आगे यह उम्मीद है कि लगभग दो दशकों में इसका स्थान 500 नैनो मीटर से सिमट कर 1-10 नैनो मीटर हो जाएगा। इन डिजिटल या अर्द्धचालक पदार्थों के विकास में हमेशा से कुछ मूलभूत सिद्धांतों का पालन होता आया है। यहां अर्द्धचालक विकास के इन मूल मंत्रो का उल्लेख किया जा सकता है।



अर्धचालक विकास के कुछ मूलभूत नियम


  1. आकार कुछ भी हो, इसे छोटा कीजिए।

  2. वेग कुछ भी हो, उसे तीव्रतम कीजिए।

  3. कार्य (Function) कुछ भी हो, इसकी क्षमता बढ़ाइए।

  4. मूल्य कुछ भी हो, कम कीजिए।

  5. तापमान कुछ भी हो, इसे ठण्डा कीजिए।


  6. कोई भी चरघातांकी नियम (Exponential Law) सर्वदा के लिए नहीं है।....लेकिन इसे दीर्घकालीन बनाया जा सकता है।

चरघातांकी नियम पर की गई उपरोक्त टिप्पणी गॉर्डन मूर की है जो कि इन्टेल के संस्थापक हैं। इनके कार्य और उत्कृष्टता के आधार पर इन्हें सिलिकन युग का मसीहा कहते हैं। नैनो और इसके आश्चर्यजनक गुणों को समझने के लिए अलग अलग व्याख्याएं स्वीकार की गई हैं। एक ओर इसकी व्याख्या चिरसम्मत सोपान नियमों (Classical Scales) के आधार पर की जाती है तो दूसरी ओर क्वांटम कॉनफाइनमेन्ट तर्क (Quantum Confinement Argument) का सहारा लिया जाता है।


सबसे पहले तो यह कि नैनो स्तर को शून्य वीमीय की श्रेणी में रखते हैं। दूसरा सबसे बड़ा गुण यह है कि नैनो स्तर पर पदार्थ का क्षेत्रफल आयतन अनुपात बहुत बढ़ जाता है। इस स्तर पर इसके 15%-30% परमाणु सतह पर होते हैं। एक तीसरा महत्वपूर्ण गुण इसका कम से कम ऊर्जा आवश्यकता का होना है। इन विशेषताओं की वजह से नैनो स्तर पर पदार्थ अतिक्रियाशील हो जाते हैं।



नैनो स्तर पर पदार्थ निर्माण


नैनो स्तर पर किसी पदार्थ के निर्माण के लिए मुख्यतः दो तरीके प्रयोग में लाए जाते हैं। एक शीर्ष-तल प्रक्रिया (Top-Down Approach) और दूसरी तल-शीर्ष प्रक्रिया (Bottom-Up Approach.) शीर्ष-तल और तल-शीर्ष प्रक्रियाओं को समझने के लिए रसोई बनाने का उदाहरण दिया जा सकता है। जिस तरह रसोई में किसी व्यंजन में मसाला डालने हेतु उसे सील-बट्टे पर पीस कर छोटा करते हैं और वहीं दूसरी ओर अलग-अलग चीजों को मिलाकर एक व्यंजन तैयार करते हैं। उपरोक्त दोनों निर्माण होता है लेकिन एक में छोटे-छोटे टुकड़ों में बांट करके और दूसरे में कई छोटे-छोटे भागों को एक में मिला कर कुछ बनाया जाता है।



नैनो के कुछ प्राकृतिक उदाहरण


प्रकृति में भी नैनो के अनेक उदाहरण देखने को मिलते हैं। यहां एक तरह के समुद्री शैवाल का उल्लेख किया जा सकता है। Emiliania huxleyi का खोल 2.5 माइक्रोमीटर व्यास का होता है और क्रिस्टलीय कैल्सियम कार्बोनेट (कैल्साइट) का बना होता है। नैनो आकार के संरंध्र और डिजाइन इसकी विशेषता होते हैं। इन्हीं डिजाइनों और संरचनाओं से प्रेरित होकर कृत्रिम रूप से कैल्सियम कार्बोनेट के नैनो क्रिस्टलों का विकास किया गया। प्रयोगशाला में विकसित यह क्रिस्टल, प्राकृतिक नैनो क्रिस्टल से काफी अलग थे। एक दूसरा उदाहरण डायटम (Diatoms) का है। डायटम एक तरह के एककोशिकीय समुद्री शैवाल होते हैं। इनकी विशेषता सिलिकॉन आक्साइड के बने हुए संरंध्र खोल के कारण होती है। यह खोल नैनोमीटर के स्तर तक के हो सकते हैं।


यहां एक दूसरे उदाहरण के रूप में अस्थियों की सूक्ष्म संरचना का वर्णन करना उचित रहेगा। अस्थियां मुख्यतः हाइड्रॉक्सीएपेटाइट की बनी होती हैं। यह खनिजों का एक समूह होता है। अस्थियों की सूक्ष्म संरचना में हमें नैनो आकार के संरंध्र दिखाई पड़ते हैं इन संरंध्रों के कारण अस्थि स्पंजी हो जाती है और इसका वजन भी काफी कम हो जाता है। जांघ की फीमर अस्थि सबसे अधिक मजबूत होती है। यह उल्लेखनीय है कि नैनो संरंध्र होने बावजूद फीमर की मजबूती बहुत अधिक होती है। यह शोध की विषय वस्तु है और इस पर अधिक ध्यान देने की भी जरूरत भी है।

नैनो स्तर की यह संरंध्रता इसके हल्केपन और मजबूती को असाधारण रूप से बढ़ा देती है। अगर हम इन सभी प्राकृतिक रचनाओं को ध्यान से देखें तो हमें यह ज्ञात होता है कि ऐसी सभी प्राकृतिक संरचनाएं जो नैनो द्वारा प्रेरित होती हैं उनके अणुओं में नैनो मीटर के स्तर पर विभेदन होता है। दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि इन सभी संरचनाओं में स्थान में द्रव्य का संयोजन अद्भुत है। करोड़ों वर्षों के उत्परिवर्तनात्मक विकास और अनुकूलन से विकसित हुई यह रचनाएं प्रकृति के अद्भुत शिल्प का उदाहरण है।



नैनो के क्षेत्र में भारतीय पहल


नैनो विज्ञान के क्षेत्र में शोध और विकास के लिए भारतीय पहल के रूप में नैनो साइंस एवं तकनीकी मिशन की स्थापना की गई है। इस मिशन के मुख्य ध्येय निम्नलिखित हैं।


  • नैनो इलेक्ट्रॉनिक्स

  • औषधि वितरण प्रणाली

  • प्रकाश सज्जा के लिए फॉस्फर्स

  • सतह पर नैनो स्तर की कोटिंग

आरंभ में 1960 से 2005 तक नैनो और अर्धचालक विकास के क्षेत्र में भारत का योगदान नगण्य रहा है। इसके बाद के वर्षों को उल्लेखनीय प्रयास और सफलताओं का समय कहा जा सकता है। विगत वर्षों में नैनो विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। वैश्विक परिदृश्य में यहां आदर्श उदाहरण के तौर पर ताइवान का नाम लिया जा सकता है। ताइवान ने पूरे कंप्यूटर के बजाए इसके चिप को विकसित करने पर अपना पूरा ध्यान लगाया और उल्लेखनीय सफलता भी प्राप्त की। यहां यह उल्लेखनीय है कि अभी नैनो और अर्धचालक विकास में हमें पूरी सफलता नहीं मिली है। कुछ महत्वपूर्ण तकनीकी और उत्पादों के लिए अब भी हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर हैं। ऐसे में पूर्ण स्वदेशी तकनीकी के विकास हेतु आधारभूत ढाचे में बदलाव अति आवश्यक है। विभिन्न परियोजनाओं और इनके व्यावसायिक विकास हेतु प्रोत्साहन की आवश्यकता भी है। नैनो के क्षेत्र में भारत में उज्ज्वल संभावनाएं हैं।



सन्दर्भ



बाहरी कड़ियाँ


  • नैनो विज्ञान पर उपलब्ध शैक्षणिक सामग्री

  • नैनो विज्ञान और तकनीकि पर भारतीय पहल


-पदार्थ विज्ञान, विज्ञान

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